हड़प्पा सभ्यता( सिंधु घाटी की सभ्यता)
- 1922 - 1923 ईस्वी में सिंधु के लरकाना जिले में भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा श्री रखलदास बनर्जी के नेतृत्व में की गई खुदाई में मोहनजोदड़ो नामक नगर के अवशेष प्राप्त हुए।
- कुछ समय पश्चात पंजाब के मॉण्टगोमरी जिले (वर्तमान पाकिस्तान) में आर.बी दयाराम साहनी द्वारा की गई खुदाई में हड़प्पा नामक स्थान के अवशेष प्राप्त हुए ।
- इसके बाद पुरातत्व विभाग के डायरेक्टर जनरल सर जॉन मार्शल के नेतृत्व में वहां विस्तृत रूप से खुदाई करवाई गई, जहां से उसी प्रकार के कई सभ्यताओं के अवशेष प्राप्त हुए ।इन अवशेषों के आधार पर जानी गई सभ्यताओं को सिंधु घाटी की सभ्यता के नाम से पुकारा गया।
सभ्यता का विस्तार क्षेत्र :
- हड़प्पा सभ्यता और मोहनजोदड़ो एक दूसरे से प्रायः 650 किलोमीटर दूरी पर स्थित है।
- इस सभ्यता के अवशेष उत्तर में अंबाला जिले के रोपड़ नामक स्थान के निकट से लेकर दक्षिण में काठियावाड़ में रंगपुर जिले और महाराष्ट्र में अहमदनगर जिले तक तथा पूर्व में गाजीपुर ,वाराणसी बक्सर और पटना तक प्राप्त हुए हैं।
राजनीतिक व्यवस्था :-
1946 ईस्वी में हुए नवीनतम खोजों के आधार पर यह विश्वास किया जाता है कि वहां पर एक शक्तिशाली केंद्र सरकार थी ।
- योजनाबद्ध नगर निर्माण ,
- नापने और तौलने के समान साधन,
- योजनाबद्ध सड़कों का निर्माण, आदि इस कथन के प्रमाण हैं।
नगर और भवन के निर्माण :-
- हड़प्पा और मोहनजोदड़ो का नगर निर्माण एक समान योजना पर किया गया था। दोनों नगरों का पश्चिम दिशा में 9 से 15 मीटर तक ऊंचा और 360 ×180 वर्ग मीटर क्षेत्रफल का एक सुरक्षा स्थान अथवा गण था, जो एक दीवार से रक्षित था और जिसमें सार्वजनिक भवन बनाए गए थे।
- नगर की स्वच्छता के लिए विशेष प्रबंध था, दोनों नगरों की मुख्य सड़कें जो 2.70 से 10.20 मीटर तक चौड़ी थी और कहीं कहीं आधे मील तक सीधी गई हुई थी, एक दूसरे को समकोण बनाती हुई काटती थी,जिससे नगर विभिन्न भागों में बटे हुए थे।
- इन भागों में छोटी-छोटी गलियां थी, जिनके दोनों और मकान बने हुए थे। प्रत्येक गली में एक सार्वजनिक कुआं हुआ करता था।
- प्रत्येक मकान की नाली सड़क के नाली में आकर मिलती थी और सड़क की नालियां ईंटों से ढकी हुई थी। नालियां साफ की जा सके और नालियों का पानी नगर से बाहर जा सके इसका प्रबंध था।
- कुछ स्थानों पर कूड़ा डालने के स्थान बने हुए थे।
- सड़कों पर रोशनी का प्रबंध किया जाता था ।
- मोहनजोदड़ो और हड़प्पा में मकान बनाने के लिए केवल ईटों का प्रयोग किया गया था ।
- मकान दो मंजिले अथवा उससे अधिक भी होती थी। एक मकान में चार या छह कमरों के अतिरिक्त एक रसोई घर भी होता था।
- प्रत्येक मकान में स्नानगृह था, जहां व्यक्ति खड़े होकर स्नान सकते थे।
- मकानों की छतें लकड़ी की होती थी ।मकानों में खिड़कियां थी और ऊपर की मंजिलों पर जाने के लिए सीढ़ियां होती थी।
- दरवाजे दीवारों के बीच में ना होकर कोने में होते थे।
- मोहनजोदड़ो में पाई गई सबसे बड़ी इमारत का क्षेत्रफल 69 ×24 वर्ग मीटर है।
- हड़प्पा में पाई गई सबसे बड़ी इमारत एक अनाज का गोदामघर है जिसका क्षेत्रफल 51 ×41 वर्ग मीटर है, जो छोटे-छोटे भागों में बटा हुआ है।
अस्त्र -शस्त्र और सुरक्षा साधन :-
- खुदाई में विभिन्न प्रकार के अस्त्र-शस्त्र प्राप्त हुए हैं, जिनका प्रयोग यहां के निवासी करते थे ।
- मुख्य हथियार कुल्हाड़ी, गदा, भाला ,कटार ,बिना धार वाली तलवारें और कुछ मात्रा में धनुष -बाण थे।
- वे कवच और ढाल का प्रयोग भी अपनी रक्षा के लिए करते थे।
आर्थिक जीवन :-
- यहां के निवासियों का मुख्य पेशा कृषि और व्यापार करना था।
- वे गेहूं,जौ ,बाजरा, कपास और विभिन्न प्रकार के फलों का उत्पादन करते थे
- वे नदी के पानी का प्रयोग सिंचाई के रूप में करते थे ,उन्होंने नहरों का निर्माण तो नहीं किया था, परंतु पानी के प्रवाह को रोकने के लिए बांध बनाए थे।
- भैंस, गाय ,भेड़ , सूअर ,कुत्ता ,बैल ,नंदी, गधा ,तोता और बाज उनके पालतू पशु थे।
- हड़प्पा में पालतू बिल्ली के पाये जाने के प्रमाण मिले हैं।
- वह हाथी, ऊंट से परिचित थे।
- जंगली पशुओं में वे भैंसा, बंदर ,भालू ,चीता, गैंडा, खरगोश, घड़ियाल ,कछुआ और मगरमच्छ से परिचित थे और उनका शिकार करते थे।
- उनका व्यापार भारत के अन्य भागों और विदेशों से भी था ,भारत में कश्मीर, मैसूर और नीलगिरी पहाड़ियों के प्रदेशों तथा विदेशों में मिस्त्र, क्रीट, सुमेर ,मेसोपोटामिया आदि देशों से उनके व्यापारिक संबंध थे। जो उनकी संपन्नता का मुख्य कारण था।
- इन्हें कुम्हार के चाक और बढ़ाई के गोल पहिए का ज्ञान था।
- हड़प्पा- निवासियों ने कास्ट -कला में विशेष योग्यता प्राप्त कर ली थी ।
- वे तोल के विभिन्न बाटों का प्रयोग करते थे, जिनमें सबसे अधिक प्रयोग 16 इकाई के बाट का होता था।
- यहां से पकाई हुई मिट्टी की एक तराजू के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
- वे दशमलव प्रणाली के प्रयोग से परिचित थे ।
सामाजिक जीवन :-
उनका समाज विभिन्न वर्गों में विभाजित था ,मुख्यत: उसमे चार श्रेणियां थी;
1. बुद्धिजीवी वर्ग जिसमें पुरोहित ,चिकित्सक ,ज्योतिषी आदि सम्मिलित थे।
2. योध्दा वर्ग जो सैनिक वर्ग था ।
3.व्यापारियों, शिल्पियों, कलाकारों आदि का वर्ग ,
4. श्रमिक- वर्ग जिसमें किसान, मजदूर, मछली पकड़ने वाला, गृह सेवक आदि सम्मिलित थे ।
- स्त्री और पुरुष की वेशभूषा समान थी। कमर से नीचे धोती और कमर से ऊपर बाएं कंधे से दाएं कंधे के नीचे दबने वाला साल उनका प्रमुख वस्त्र था ।
- स्त्री और पुरुष दोनों ही लंबे बाल रखते थे, बालों में सोने, चांदी अथवा तांबे के पिन लगाए जाते थे ।
- पुरुष दाढ़ी रखते थे, परंतु मूछों को साफ करने का प्रचलन था ,पुरुष उस्तरा का प्रयोग करना जानते थे।
- स्त्रियां सौंदर्य प्रसाधनों से पूर्णतया अवगत थी, चेहरे को सुंदर बनाने के लिए उन्हें काजल, लिपस्टिक, विभिन्न रंगों के पाउडर आदि का प्रयोग आता था। वह सिंगारदान और श्रृंगार की मेज का प्रयोग करती थी।
- आभूषणों का प्रयोग स्त्री और पुरुष समान रूप से करते थे ।आभूषण सोना, चांदी, तांबा ,और हाथी दांत के बनाएं जाते थे ।
- स्त्रियां माथे का टीका ,हार, बुंदे, चूड़ियां ,पायजेब आदि सभी प्रकार के आभूषणों का प्रयोग करती थी।
- यहां के निवासियों का मुख्य भोजन गेहूं ,जौ ,दूध ,फल और मछली का मांस था ।
- घरों में उपयोग आने वाले विभिन्न सामग्रियों का प्रयोग करते थे, जो मिट्टी ,पत्थर, हाथी दांत ,तांबे और कांसे से बनाए जाते थे।
- कटोरे, तश्तरी घड़े, सुराही, फूलदान , लकड़ी की कुर्सियां ,चारपाई ,हाथी दांत की सुइयां और कुल्हाड़ी ,चाकू ,मछली का कांटा ,आरी ,तांबे और मिट्टी के दीपक आदि विभिन्न वस्तुओं का प्रयोग किया जाता था।
- उनके प्रमुख खेल गेंद और चौपड़ थे।
- शिकार करना भी उनका मनोरंजन का एक हिस्सा था।
- यहां के निवासी अपने मृतक को भूमि में गाड़ते थे।
- उन्हें मानवीय चिकित्सा का ज्ञान था।
प्रमुख नगरें :-
हड़प्पा सभ्यता( सिंधु घाटी की सभ्यता)
कालीबंगा :-
- यह सरस्वती नदी के तट पर स्थित था।
- मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के बाद कालीबंगा तीसरा सबसे बड़ा नगर था।
- यहां से तांबे की औजार, हथियार, मूर्तियां मिली हैं । तांबे की काली चुड़िया मिली है ।
- यहां से हल प्राप्त हुए हैं ।
- आयताकार ,वर्तुलाकार व अंडाकार अग्नि वेदिका मिली है।
- यहां जूते हुए खेत के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
- यहां से सेलखड़ी की मोहरे प्राप्त हुई हैं।
दैमाबाद:-
- दैमाबाद के घर वर्गाकार ,आयताकार ,वृत्ताकार होते थे ।
- दीवारें मिट्टी और गारा मिलाकर बनाई जाती थी और उसमें लकड़ी के डंडों की टेक दी जाती थी ।
- यहां से एक कूबड़दार सांड की मूर्ति मिली है ।
- रथ चलाते हुए मनुष्य, गेंडे और हाथी की आकृतियां मिली है,
कुणाल :-
- यहां 1985 में खुदाई का काम शुरू हुआ था।
- यहां पर आभूषण गलाने की भट्टी मिली है ।
- यहां गोलाकार घर भी मिले हैं ।
- यहां 24 कैरेट सोने तथा चांदी के मुकुट भी प्राप्त हुए हैं।
रोपड़:-
- इसका आधुनिक नाम 'रूपनगर' था ।
- 1950 में इसकी खोज 'बी लाल' ने की थी।
- इसकी खुदाई 1953- 1956 में यज्ञ दत्त शर्मा के द्वारा की गई थी।
- यहां प्राप्त मिट्टी के बर्तन ,आभूषण ,चर्ट ,तांबे की कुल्हाड़ी मिले हैं।
- यहां शवों को अंडाकार गड्ढों में दफनाया जाता था ।
- मिट्टी के पकाए गए आभूषण, शंख की चूड़िया, गोमेद पत्थर के मनके ,तांबे की अंगूठीयां आदि प्राप्त हुए हैं ।
राखीगढ़ी:-
- हरियाणा के हिसार जिले में सरस्वती नदी के शुष्क क्षेत्र में स्थित था ।
- राखीगढ़ी का उत्खनन व्यापक पैमाने पर 1997- 1999 ईस्वी के दौरान अमरेंद्र नाथ द्वारा किया गया था ।
- राखीगढ़ी की खोज 1963 में हुई थी।
- यहां चबूतरे पर बनाई गई अग्नि वेदिकाएं प्रमुख हैं।
- विश्व की विरासत कोष की मई 2012 की रिपोर्ट में " खतरे में एशिया के विरासत स्थल" में राखीगढ़ी का 10वॉ स्थान है।
- इस जगह का खनन पुरातत्व विभाग के डॉ आर एस बिस्त ने किया था।
- धोलावीरा का निर्माण चौकर तथा आयताकार पत्थरों से किया गया है।
- यह कुबेरपतियों का महानगर था।
- आज के आधुनिक महानगरों जैसी पक्की गटर व्यवस्था 5000 साल पहले इस धोलावीरा मे मिली थी।
- धोलावीरा के दुर्ग में एक कुआं में खिड़की थी जहां दीपक जलाया जाता था।
- धौलावीरा के उत्तर में महाद्वार के ऊपर 10 अक्षर के बोर्ड मिले हैं, जिसकी शब्दों की लिखावट दाएं से बाएं दिशा की ओर है ।
रंगपुर :-
- रंगपुर गुजरात के काठियावाड़ प्रायद्वीप में सुकभादर नदी के समीप स्थित है।
- इस स्थल की खुदाई वर्ष 1954 मैं रंगनाथ राव द्वारा की गई थी ।
- यहां धान की भूसी के ढेर मिले हैं।
लोथल:-
- यह शहर भारत के गुजरात के क्षेत्र में स्थित है।
- इसकी खोज सन 1954 में हुई थी ।
- यहां से सेलखड़ी की चार मुंहरे, तांबे की चूड़ियां, शंख मिले हैं।
- यहां एक मृदभांड में कौवा और लोमड़ी के चित्र बने मिले हैं।
- यहां से अग्नि वेदिका, लकड़ी का अन्नागार ,अन्न पीसने की चक्की, हाथी दांत आदि प्राप्त हुए हैं।
- यहां से दिशा मापक-यंत्र, तांबे का पक्षी, आदि प्राप्त हुऐ हैं।
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